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    SCOPE OF OUR PROJECTS
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About Sanstha

शिक्षित समाज का दायित्व है कि अपने अनुभवों से समाज के अशिक्षित, असहाय, असमर्थ व अविकसित समाज का सर्वांगिन विकास में सहायक बने। अशिक्षा, आर्थिक कमजोरी एक वजह है। आर्थिक कमजोरी कर्म विशेष का नहीं होना एक बहुत बड़ी वजह है।


हमारा देश 650 वर्षों तक मुगलों का गुलाम रहा। लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी करोड़ों वंचित परिवार रेलवे स्टेशन के आस-पास, रेलवे ट्रैक के दोनों साईड, बस स्टैंड के इर्दगिर्द बनें झुग्गी झोपड़ियों में यहां तक खोलें आसमान के नीचे तील-तील मर रहें हैं। शहरी क्षेत्रों में गोलम्बर से लेकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नदी, नहर, आहर, तालाब के किनारे झुग्गी झोपड़ियों में आज भी देखा जा सकता है। जिस समाज की परिकल्पना हमनें किया है वो समाज करोड़ों की संख्या में जन्म लेते हैं, विचरण करते हैं और मर जातें हैं। ऐसे समाज सुई से लेकर हवाई जहाज तक बनाने में भी अपनी श्रम के साथ जरूरी भूमिका निभाती है। सड़क से लेकर महलों तक बनाने वाला समाज है। यू कहिए तमाम संसाधन पैदा करने वाला समाज है लेकिन देखा जाय तो इनकी प्रीडा़ असमान्य होता है। मैं जब मैट्रिक में पढाई कर रहा था उस समय मैं ज्यादा तर गरीबी पे ध्यान नहीं दिया करता था लेकिन धीरे-धीरे अपने समाज के प्रति संवेदना बढ़ती गयी। गरीबी को जानने का प्रयास करने लगा चिंतन करने लगा। इस असमंजस में अपनी पढाई को पुरा करने के लिए संकल्पित रहा और मैं हमेशा सोचता रहा कि मैं अच्छा पढ़ाई करने के बाद समाज के उन बच्चों को पढा़ऊंगा जो संसाधन विहीन है और जानवरों की तरह जीवन जी रहें हैं। मुझे तब और तकलीफ हुआ जब मैंने पढा़ की-


ऐशा: न विद्या: तपो:न दानव ज्ञानं न शीलं न गुणों:न धर्म: ते मृत्यु लोके:भुमि:भार भूति मनुष्य रूपेण: मृगाश्चरंति :


अर्थात जिसके पास यश, बल, विद्या, ज्ञान, शील, गुण, तप, धर्म, नहीं होता है वो इस धरती पर हीरण के समान यानी जानवर के समान जन्म लेता है, विचरण करता है और मर जाता है। इसलिए मैं कृत संकल्पित हूं ऐसे में उन बच्चों को पढाऊंगा जो सदियों से शिक्षा से वंचित रह रहें हैं ।


पहाड़ पुरूष बाबा दशरथ मांझी हमारे धर्य और शक्ति के स्वरूप हैं। बाबा दशरथ मांझी के पास एक छेनी और एक हथौडी़ के अलावे जो उनके पास था वो था हिम्मत, धर्य और अटुट विश्वास, जूनून, कुछ कर गुजरने की दृढ़ ईच्छा शक्ति जिसके बल बुते पहाड़ को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। संसाधन विहीन असाधारण व्यक्तित्व के धनी बाबा लगातार 22 वर्षों तक अपने छेनी -हथौडी़ से प्रहार करता रहा और अंततः बाबा जीत गयें पहाड़ की हार हुई। पहाड़ का सीना चीर दुनियां के सामने एक चुनौती पेश कर इतिहास के पन्नों में एक अदभूत अध्याय जोड़ लिम्का गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर इतिहास रच डाला।

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